होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति (Homeopathy Medicine)
होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति की खोज 1806
में सेम्युअल हेनीमैन नाम के वैज्ञानिक ने की थी| इस पद्धति के मुख्य सिद्धांत के अंतर्गत यह उल्लेख है कि प्रत्येक पदार्थ की न्यून मात्रा
उत्प्रेरण (Catalysis), सामान्य
मात्रा अवरोधन तथा पदार्थ की अधिक मात्रा हनन का कार्य करती है| कुछ
ही वर्ष पहले विषाक्त वस्तुओं के अध्ययन के लिए होम्योपैथी को विशेष स्थान प्राप्त हुआ है| होम्योपैथी चिकित्सा में रोगी के साथ वार्तालाप करके रोग की पहचान की
जाती है| इस चिकित्सा पद्धति
में प्राकृतिक पदार्थों
जैसे सामान्य वनस्पति एवं बीज, सामान्य
धातु एवं उनके लवण द्वारा औषधियों
की प्राप्ति की जाती है| इन
औषधियों में किसी प्रकार के कुप्रभाव
नहीं पाए जाते हैं| होम्योपैथी दवाओं का
इस्तेमाल बिना डरे किया जा
सकता है, क्योंकि होम्योपैथी
दवाओं से शरीर को कोई नुक्सान नहीं पहुंचता|
होम्योपैथी दवाओं का इस्तेमाल हर कोई
इंसान कर सकता है| होम्योपैथी में इस्तेमाल होने वाली सभी
औषधियां मदर टिंक्चर नामक अल्कोहल
के घोल में घुलनशील हैं| इन
औषधियों का तनुकरण (Dilution) तब
तक किया जाता है जब तक कि सौ इकाई घोल में
उनकी मात्रा एक बूंद नहीं हो जाए| होम्योपैथी
में सामान्य औषधि के प्रभाव को 6C तथा
30C के रूप में व्यक्त
किया जाता है| बहुत सी पुरानी बीमारियों में
होम्योपैथी ने सफलता प्राप्त की
है| आज होम्योपैथी तेजी
से बढ़ती प्रणाली बन गयी है और लगभग पूरी दुनिया में इसका अभ्यास किया जा रहा है।
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