Sunday, 23 February 2014

cracked heel

फटी एड़ियो का उपचार:

शरीर में उष्णता या खुश्की बढ़ जाने, नंगे पैर चलने-फिरने, खून की कमी, तेज ठंड के प्रभाव से तथा धूल-मिट्टी से पैर की एड़ियां फट जाती हैं।

यदि इनकी देखभाल न की जाए तो ये ज्यादा फट जाती हैं और इनसे खून आने लगता है, ये बहुत दर्द करती हैं। एक कहावत शायद इसलिए प्रसिद्ध है-
जाके पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई।

घरेलू इलाज

* अमचूर का तेल 50 ग्राम, मोम 20 ग्राम, सत्यानाशी के बीजों का पावडर 10 ग्राम और शुद्ध घी 25 ग्राम। सबको मिलाकर एक जान कर लें और शीशी में भर लें। सोते समय पैरों को धोकर साफ कर लें और पोंछकर यह दवा बिवाई में भर दें और ऊपर से मोजे पहनकर सो जाएं। कुछ दिनों में बिवाई दूर हो जाएगी, तलवों की त्वचा साफ, चिकनी व साफ हो जाएगी।

* त्रिफला चूर्ण को खाने के तेल में तलकर मल्हम जैसा गाढ़ा कर लें। इसे सोते समय बिवाइयों में लगाने से थोड़े ही दिनों में बिवाइयां दूर हो जाती हैं।

चावल को पीसकर नारियल में छेद करके भर दें और छेद बन्द करके रख दें। 10-15 दिन में चावल सड़ जाएगा, तब निकालकर चावल को पीसकर बिवाइयों में रोज रात को भर दिया करें। इस प्रयोग से भी बिवाइयां ठीक हो जाती हैं।

* गुड़, गुग्गल, राल, सेंधा नमक, शहद, सरसों, मुलहटी व घी सब 10-10 ग्राम लें। घी व शहद को छोड़ सब द्रव्यों को कूटकर महीन चूर्ण कर लें, घी व शहद मिलाकर मल्हम बना लें। इस मल्हम को रोज रात को बिवाइयों पर लगाने से ये कुछ ही दिन में ठीक हो जाती हैं।

* रात को सोते समय चित्त लेट जाएं, हाथ की अंगुली लगभग डेढ़ इंच सरसों के तेल में भिगोकर नाभि में लगाकर 2-3 मिनट तक रगड़ते हुए मालिश करें और तेल को सुखा दें। जब तक तेल नाभि में जज्ब न हो जाए, रगड़ते रहें। यह प्रयोग सिर्फ एक सप्ताह करने पर बिवाइयां ठीक हो जाती हैं और एड़ियां साफ, चिकनी व मुलायम हो जाती हैं। एड़ी पर कुछ भी लगाने की जरूरत नहीं।

Thursday, 20 February 2014

mint

पुदीने के यह गुण

मुंहासे दूर करने के लिए पुदीने की कुछ पत्तियां लेकर पीस लें। अब उसमें 2-3 बूंदे नींबू का रस डालकर इसे चेहरे पर कुछ देर के लिए लगाएं।
पुदीने को सूखाकर पीस लें। अब इसे कपड़े से छानकर बारीक पाउडर बनाकर एक शीशे में रख लें। सुबह-शाम एक चम्मच चूर्ण पानी के साथ लें। यह फेफड़ों में जमे हुए कफ के कारण होने वाली खांसी और दमा की समस्या को दूर करता है। बिच्छू या बर्रे के दंश स्थान पर पुदीने का अर्क लगाने से यह विष को खींच लेता है और दर्द को भी शांत करता है।

इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी होता है। यह पेट के विकारों में काफी फायदेमंद होता है। पुदीना के कई फायदे हैं। एक गिलास पानी में 8-10 पुदीने की पत्तियां, थोड़ी-सी काली मिर्च और जरा सा काला नमक डालकर उबालें। 5-7 मिनट उबालने के बाद पानी को छान लें। फिर इसे पीने के बाद यह खांसी, जुकाम और बुखार से काफी राहत पहुंचाता है। यदि हाजमा खराब हो तो एक गिलास पानी में आधा नींबू निचोड़ें, उसमें थोड़ा-सा काला नमक डालें और पुदीने की 8-10 पत्तियां पीसकर मिलाएं। अब पीड़ित व्यक्ति को इसे पिलाएं, तुरंत लाभ मिलेगा।
डे पानी से धो लें। कुछ दिन ऐसा करने से मुंहासे तो ठीक हो ही जाएंगे, चेहरे पर चमक भी आ जाएगी। पुदीने को सूखाकर पीस लें। अब इसे कपड़े से छानकर बारीक पाउडर बनाकर एक शीशे में रख लें। सुबह-शाम एक चम्मच चूर्ण पानी के साथ लें। यह फेफड़ों में जमे हुए कफ के कारण होने वाली खांसी और दमा की समस्या को दूर करता है। अगर नमक के पानी के साथ पुदीने के रस को मिलाकर कुल्ला करें तो गले की खराश और आवाज में भारीपन दूर हो जाते हैं। यही नहीं आवाज साफ हो जाती है और गले में काफी आराम मिलता है।


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Thursday, 23 January 2014

sprouted wheat




अंकुरित गेहूं खाने से फायदे,
  • स्वस्थ रहने के लिए अधिकतर लोग भोजन में सलाद भी शामिल करते हैं क्योंकि माना जाता है कि खीरा, ककड़ी, टमाटर, मूली, चुकन्दर, गोभी आदि खाना  स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा है। लेकिन अगर पत्तेदार सब्जी व सलाद के साथ ही भोजन में अंकुरित अनाज को शामिल किया जाए तो यह बहुत फायदेमंद होता है,
  • क्योंकि बीजों के अंकुरित होने के बाद इनमें पाया जाने वाला स्टार्च- ग्लूकोज, फ्रक्टोज एवं माल्टोज में बदल जाता है जिससे न सिर्फ इनके स्वाद में वृद्धि होती है बल्कि इनके पाचक एवं पोषक गुणों में भी वृद्धि हो जाती है।
  • वैसे तो अंकुरित दाल व अनाज खाना लाभदायक होता है ये तो सभी जानते हैं लेकिन आज हम बताते हैं इन्हें खाने के कुछ खास फायदे जिन्हें आप शायद ही जानते होंगे....
  • अंकुर उगे हुए गेहूं में विटामिन-ई भरपूर मात्रा में होता है। शरीर की उर्वरक क्षमता बढ़ाने के लिए विटामिन-ई एक आवश्यक पोषक तत्व है। यही नहीं, इस तरह के गेहूं के सेवन से त्वचा और बाल भी चमकदार बने रहते हैं।
  • किडनी, ग्रंथियों, तंत्रिका तंत्र की मजबूत तथा नई रक्त कोशिकाओं के निर्माण में भी इससे मदद मिलती है। अंकुरित गेहूं में मौजूद तत्व शरीर से अतिरिक्त वसा का भी शोषण कर लेते हैं।
  • अंकुरित गेहूं में उपस्थित फाइबर के कारण इसके नियमित सेवन से पाचन क्रिया भी  सुचारु रहती है। अत: जिन लोगों को पाचन संबंधी समस्याएं हो उनके लिए भी अंकुरित  गेहूं का सेवन फायदेमंद है। अंकुरित खाने में एंटीआक्सीडेंट,  विटामिन , बी, सी, पाया जाता है। इससे कैल्शियम, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, आयरन और जिंक  मिलता है। रेशे से भरपूर अंकुरित अनाज पाचन तंत्र को सुदृढ बनाते हैं।
  • अंकुरित भोजन शरीर का मेटाबॉलिज्म रेट बढ़ता है। यह शरीर में बनने वाले
    विषैले तत्वों को बेअसर कर, रक्त को शुध्द करता है। अंकुरित गेहूं के दानों को
    चबाकर खाने से शरीर की कोशिकाएं शुध्द होती हैं और इससे नई कोशिकाओं के
    निर्माण में भी मदद मिलती है।
  • अंकुरित भोज्य पदार्थ में मौजूद विटामिन और प्रोटीन होते हैं तो शरीर को फिट
    रखते हैं और कैल्शियम हड्डियों को मजबूत बनाता है।
  • अंकुरित मूंग, चना, मसूर, मूंगफली के दानें आदि शरीर की शक्ति बढ़ाते हैं।
    अंकुरित दालें थकान, प्रदूषण व बाहर के खाने से उत्पन्न होने वाले ऐसिड्स
    को बेअसर कर देतीं हैं और साथ ही ये ऊर्जा के स्तर को भी बढ़ा देती हैं।]
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Wednesday, 22 January 2014

लाख दवाओं की एक दवा है बथुआ ----- बथुआ एक हरी सब्जी का नाम है, यह शाक प्रतिदिन खाने से गुर्दों में पथरी नहीं होती। बथुआ आमाशय को बलवान बनाता है, गर्मी से बढ़े हुए यकृत को ठीक करता है। इसकी प्रकृति तर और ठंडी होती है, यह अधिकतर गेहूँ के खेत में गेहूँ के साथ उगता है और जब गेहूँ बोया जाता है, उसी सीजन में मिलता है।
रासायनिक सँघटन :- बथुए में लोहा, पारा, सोना और क्षार पाया जाता है। बथुए का साग जितना अधिक से अधिक सेवन किया जाए, निरोग रहने के लिए उपयोगी है। बथुए का सेवन कम से कम मसाले डालकर करें। नमक न मिलाएँ तो अच्छा है, यदि स्वाद के लिए मिलाना पड़े तो सेंधा नमक मिलाएँ और गाय या भैंस के घी से छौंक लगाएँ।

* कच्चे बथुए का रस एक कप में स्वादानुसार मिलाकर एक बार नित्य पीते रहने से कृमि मर जाते हैं। बथुए के बीज एक चम्मच पिसे हुए शहद में मिलाकर चाटने से भी कृमि मर जाते हैं तथा रक्तपित्त ठीक हो जाता है।
 * सफेद दाग, दाद, खुजली, फोड़े, कुष्ट आदि चर्म रोगों में नित्य बथुआ उबालकर, निचोड़कर इसका रस पिएँ तथा सब्जी खाएँ। बथुए के उबले हुए पानी से चर्म को धोएँ। बथुए के कच्चे पत्ते पीसकर निचोड़कर रस निकाल लें। दो कप रस में आधा कप तिल का तेल मिलाकर मंद-मंद आग पर गर्म करें। जब रस जलकर पानी ही रह जाए तो छानकर शीशी में भर लें तथा चर्म रोगों पर नित्य लगाएँ। लंबे समय तक लगाते रहें, लाभ होगा।

* फोड़े, फुन्सी, सूजन पर बथुए को कूटकर सौंठ और नमक मिलाकर गीले कपड़े में बांधकर कपड़े पर गीली मिट्टी लगाकर आग में सेकें। सिकने पर गर्म-गर्म बाँधें। फोड़ा बैठ जाएगा या पककर शीघ्र फूट जाएगा।

* बालों को बनाए सेहतमंद

बालों का ओरिजनल कलर बनाए रखने में बथुआ आंवले से कम गुणकारी नहीं है। सच पूछिए तो इसमें विटामिन और खनिज तत्वों की मात्रा आंवले से ज्यादा होती है। इसमें आयरन, फास्फोरस और विटामिन ए व डी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।

* दांतों की समस्या में असरदार

बथुए की पत्तियों को कच्चा चबाने से मुंह का अल्सर, श्वास की दुर्गध, पायरिया और दांतों से जुड़ी अन्य समस्याओं में बड़ा फायदा होता है।

*कब्ज को करे दूर

कब्ज से राहत दिलाने में बथुआ बेहद कारगर है। ठिया, लकवा, गैस की समस्या आदि में भी यह अत्यंत लाभप्रद है।

*बढ़ाता है पाचन शक्ति

भूख में कमी आना, भोजन देर से पचना, खट्टी डकार आना, पेट फूलना जैसी मुश्किलें दूर करने के लिए लगातार कुछ सप्ताह तक बथुआ खाना काफी फायदेमंद रहता है।

*बवासीर की समस्या से दिलाए निजात

सुबह शाम बथुआ खाने से बवासीर में काफी लाभ मिलता है। तिल्ली [प्लीहा] बढ़ने पर काली मिर्च और सेंधा नमक के साथ उबला हुआ बथुआ लें। धीरे-धीरे तिल्ली घट जाएगी।

*नष्ट करता है पेट के कीड़े

बच्चों को कुछ दिनों तक लगातार बथुआ खिलाया जाए तो उनके पेट के कीड़े मर जाते हैं
बथुए का उबाला हुआ पानी अच्छा लगता है तथा दही में बनाया हुआ रायता स्वादिष्ट होता है। किसी भी तरह बथुआ नित्य सेवन करें। बथुआ शुक्रवर्धक है।

बथुए की औषधीय प्रकृति:-

कब्ज : बथुआ आमाशय को ताकत देता है, कब्ज दूर करता है, बथुए की सब्जी दस्तावर होती है, कब्ज वालों को बथुए की सब्जी नित्य खाना चाहिए। कुछ सप्ताह नित्य बथुए की सब्जी खाने से सदा रहने वाला कब्ज दूर हो जाता है। शरीर में ताकत आती है और स्फूर्ति बनी रहती है।

पेट के रोग : जब तक मौसम में बथुए का साग मिलता रहे, नित्य इसकी सब्जी खाएँ। बथुए का रस, उबाला हुआ पानी पीएँ, इससे पेट के हर प्रकार के रोग यकृत, तिल्ली, अजीर्ण, गैस, कृमि, दर्द, अर्श पथरी ठीक हो जाते हैं।

* पथरी हो तो एक गिलास कच्चे बथुए के रस में शकर मिलाकर नित्य पिएँ तो पथरी टूटकर बाहर निकल आएगी। जुएँ, लीखें हों तो बथुए को उबालकर इसके पानी से सिर धोएँ तो जुएँ मर जाएँगी तथा बाल साफ हो जाएँगे।


* मासिक धर्म रुका हुआ हो तो दो चम्मच बथुए के बीज एक गिलास पानी में उबालें। आधा रहने पर छानकर पी जाएँ। मासिक धर्म खुलकर साफ आएगा। आँखों में सूजन, लाली हो तो प्रतिदिन बथुए की सब्जी खाएँ।

पेशाब के रोग : बथुआ आधा किलो, पानी तीन गिलास, दोनों को उबालें और फिर पानी छान लें। बथुए को निचोड़कर पानी निकालकर यह भी छाने हुए पानी में मिला लें। स्वाद के लिए नीबू, जीरा, जरा सी काली मिर्च और सेंधा नमक लें और पी जाएँ।

इस प्रकार तैयार किया हुआ पानी दिन में तीन बार पीएँ। इससे पेशाब में जलन, पेशाब कर चुकने के बाद होने वाला दर्द, टीस उठना ठीक हो जाता है, दस्त साफ आता है। पेट की गैस, अपच दूर हो जाती है। पेट हल्का लगता है। उबले हुए पत्ते भी दही में मिलाकर खाएँ।

* मूत्राशय, गुर्दा और पेशाब के रोगों में बथुए का साग लाभदायक है। पेशाब रुक-रुककर आता हो, कतरा-कतरा सा आता हो तो इसका रस पीने से पेशाब खुल कर आता है।

बथुए

Thursday, 12 December 2013

prolapus ani



गुदाभ्रंश (कांच निकलना) रोग की चिकित्सा-
·        माजूफल को पीसकर लेप करने से कांच का निकलना बंद हो जाता है अथवा अनार के फूलों को पीसकर लेप करें तो कांच निकलना बंद हो जाता है।
·    अनार के छिल्के को उबालकर उस पानी में बच्चे को बिठाएं अथवा खट्टे अनार के छिलकों को कूटकर उसका क्वाथ करके उसमें बच्चे को बिठाएं तो कांच निकलना बंद होता है।
about prolapus ani
Prolaus ani
·   लोहे को गर्म पानी में बुझाएं। जब जल गर्म हो जाए तो उसमें बच्चे को बिठाएं अथवा सिरके को किसी बर्तन में डालकर उसमें बच्चे को बिठाएं। इससे भी लाभ होते देखा गया है। दो माशा फिटकरी को पीसकर आधा सेर पानी में मिलाकर शौच के बाद सुबह-रात्रि गुदा प्रक्षालन करने से भी कांच निकलना बंद हो जाता है।
·      लसोड़ा (लहसवे) सूखे लेकर घृत में जलाकर घोट कर मल्हम बना लें। इसको गुदा निकलने पर रोगियों के लिए रोगन बादाम और काडलीवर आयल का प्रयोग में हितकर होता है।
·        लालड़ी गूंद (ढाक-पलास का गोंद) को पीसकर बराबर की मात्रा में शंख भस्म और शहद मिलाकर चटाने से गुद भ्रंश तथा कांच का निकलना बंद हो जाता है।
·        गाय के घृत में त्रिफला (हर्रे, बहेड़ा तथा आंवला) के चूर्ण मिलाकर चटाने से भी कुछ दिन में आराम हो जाता है अथवा रीढ़ की हड्डी पर रोजाना थोड़ी देर तक तिल का तेल मसलने से भी 15 दिन में यह रोग चला जाता है।
·        वट वृक्ष के पुराने फल (गोल) को पीसकर रोजाना शहद के साथ 3-3 माशा खाने से 10 दिन में ही कांच निकलना बंद हो जाता है अथवा गूलर के फल के चूर्ण में सौंफ का तेल या सौंफ का सत मिलाकर चटाने से कांच निकलना बंद हो जाता है।
·        नाभि के नीचे आरणा छाणे (गोइठे) की राख और गुदा के चारों तरफ भंवरा के बिल की मिट्टी का जल के साथ लेपन करना भी लाभकारी है।
·     जोवाहरड़े के चूर्ण को शहद में मिलाकर चटाने से कांच रोग में आराम हो जाया करता है। कांच पर मंडूर को पीसकर छिड़कने से अथवा लेप लगाने से भी यही लाभ होता है।
·    लसोड़ा (लहसवे) की राख, चमड़े की राख, माजूफल का चूर्ण या सफेदा लगाकर गुदा को स्वस्थान में बैठा देने से भी कांच निकलना बंद हो जाता है।
·        अकसर यह रोग बच्चों को ही होता है परंतु कभी-कभी बड़े-बड़े भी इस रोग के शिकार हो जाते हैं। इस रोग में निद्रावस्था में ही पेशाब बिस्तर पर निकल जाता है अथवा स्वप्नावस्था में ही रोगी पेशाब करके बिस्तर गीला कर देता है। बिछावन में पेशाब होने की वजह से शर्मिन्दा हो जाता है।
·        इस रोग के होने का खास कारण मसाने की कमजोरी है। ठंड के कारण जब मसाना या उसपर मढ़ा हुआ पट्ठा जब ढीला पड़ जाता है, तो पेशाब अज्ञात अवस्था में ही निकल जाता है। पेशाब में सफेदी होती है। अकसर ठंड करने वाले पदार्थों का विशेष सेवन करने से या ठंडे गीले रोगों के अंत में ही यह रोग होता है।
·        बच्चे को सोते समय पेशाब कर सुलाना चाहिए। सोते से जगाकर उसे रात में 1-2 बार पेशाब करवा दिया जाए तो बिस्तर पर पेशाब करना छूट जाएगा। निद्रा आने के लिए बच्चे को किसी व्यायाम द्वारा खूब थकान पैदा कराना तथा रात को उसे जगाए रखना भी बहुत ही गुणकारी है।

Wednesday, 11 December 2013

about epistaxis



नाक से नकसीर फूटना तथा खून गिरना-
 अकसर गर्मियों में मस्तिष्क में गर्मी पैदा होकर नाक से खून बहने लगता है। प्रायः नाक पर चोटा आदि लगकर या मस्तिष्क में विकृति पैदा होकर जाड़े आदि ऋतुओं में भी किसी-किसी को नाक से खून बहना चालू हो जाता है। अतः हम यहां नकसीर फूटने वाले रोग द्वारा नाक से खून गिरने को रोकने का अनुभूत तथा सरल उपाय दर्शाते हैं। वैसे तो साधारण बोलचाल में इसको नाक से नकसीर फूटना, खून गिरना तथा साधारण रोग ही समझा जाता है, परंतु दरअसल में यह बहुत ही भंयकर रोग है। इसे वैद्यक में रक्तपित्त रोग कहते हैं। रक्तपित्त दो प्रकार का होता है, अधोगत और ऊर्ध्वगत, जिसे गुदा तथा इन्द्री के द्वारा खून गिरता है, उसे अधोगत रक्तपित्त कहते हैं और जिसके मुंह, नाक, कान तथा आंख आदि से खून बहे, उसे ऊर्ध्वगत रक्तपित्त कहते हैं। गुदा, इन्द्री, योनि, मुंह, कान तथा आंख आदि से खून बहने में कई कारणों की प्रधानता होती है और सबकी अलग-अलग ही दवाइयां भी। अतः उनके लिए समय पर किसी चतुर वैद्य या डाक्टर की राय लेनी चाहिए। यहां हम सिर्फ नाक से ही खून बहना, नकसीर फूटना रोकने के उपाय दर्शाते हैं।

·      भुनी हुई फिटकरी, आरणे छाणे (जंगली उपले) की भस्म और कागज की भस्म। इनको सम भाग लें और महीन पीसकर नस्य दें तो बहता लहू रुके। नथनों में अनार फूल व दूब का रस डालें।
·        लाल फिटकरी का चूर्ण बनाएं, गर्म तवे पर डाल दें और ऊपर से थोड़ी गधे की लीद का पानी डाल दें। जब पानी जलकर फिटकरी फूलकर भस्म तैयार हो जाए, तब पीसकर सुंघाएं तो खून तुरंत ही बंद हो जाता है।
·    केहर वा शमई (एक प्रकार का सुनहरी रंग का गोंद होता है जिसे यदि दियासलाई से जलाया जाए तो दीपक की तरह ही जलता है। केहर वा शमई के नाम से पंसारी तथा अत्तार के यहां मिलता है) को सूक्ष्म पीसकर शर्बत अंजबार अथवा शीतल जल से 1 माशे की मात्रा दें। यदि 1 पुड़िया में खून गिरना बंद न हो तो, फिर 1 खुराक दें, अवश्य ही नकसीर रुक जाएगी। फूली फिटकरी पानी में घोलकर भाप लें तो खून रुक जाता है।
·          मुलतानी मिट्टी को जल में गूंधकर माथे और तालु पर लेप कर दें। नकसीर रुक जाएगी।
·       रोगी के सिर के केश उतरवा कर सिर पर कुछ देर तक शीतल धारा डालें। यह रक्त रोकने में अक्सीर हैं। ·        ऊंट के बाल जलाकर भस्म बना लें और महीन पीसकर नस्य दें, नकसीर रोकने में अक्सीर है।
·       यदि गर्मी में लहू गिरता हो तो आम की गुठली का रस निकालकर डालना चाहिए। कागज की राख सूंघना भी लाभप्रद है।
·        सूखे आंवलों को घी में तलकर पीसकर मस्तक पर लेप करें। तलने के बाद पानी डालकर पीसना चाहिए।      पके गूलर में चने भरकर घी में तलें, तत्पश्चात उसमें कालीमिर्च तथा इलायची के दानों का 4-4 रत्ती चूर्ण डालकर प्रातःकाल सेवन करें और बैंगन रस को मुख पर लगाएं और सूंघे।
·            रोगी को सीधा सुलाकर दूब का रस और प्याज का रस मिलाकर उसके दोनों नथुने रस से भर दें तो नकसीर का लहू तत्काल ही बंद हो जाएगा। यह कई बार का परीक्षित योग है।
·        चिकनी मिट्टी अथवा पीली मिट्टी के बड़े-बड़े ढेलों पर ठंडा पानी डालकर सूंघने से अथवा मिट्टी का अत्तर सूंघने से सहज ही नाक के बहता लहू रुक जाता है।
·           सेलखरी और सोना गेरू पीसकर 3-3 माशे, शीतल जल के साथ दिन में 3 बाद देने से नाक से रक्तस्त्राव होना बंद हो जाता है। यही रोग रक्त प्रदर में भी अच्छा लाभ करता है।
·          काले गधे की लीद का रस 1-1 बूंद नाक में डाल दें। दिन में केवल एक बार। पहले ही दिन लाभ होगा। दूसरे दिन फिर डाल दें। इसी में पूर्ण लाभ हो जाएगा। इसमें थोड़ा कपूर भी मिला लें।
·         दूब का रस 10 बूंद, तिली का तेल 5 बूंद, फिटकरी 1 रत्ती मिलाकर नस्य लें। दिन में 3-4 बार करने से दारुण नकसीर भी ठीक हो जाएगी।
लाल चंदन 3 तोला, चीनी दानेदार 3 तोला, घृत 3 तोला, शहद डेढ़ तोला। पहले लाल चंदन को कूटकर महीन चूर्ण बना लें अथवा लाल चंदन का बुरादा लें, फिर उसमें चीनी मिलाकर 6 पुड़िया बना लें। गर्म दूध में 1 पुड़िया घोलकर 6 माशा घृत और 3 माशा मधु को मिलाकर शाम-सवेरे 1-1 पुड़िया तीन रोज तक पिला दें। इससे नकसीर का गिरना, स्त्री का प्रदर रोग तथा खूनी बवासीर से खून का गिरना रुक जाता है। दवा कच्चे दूध के साथ भी ली जा सकती है, गर्म दूध में पीएं तो खूब ठंडा करके पिएं।
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stomach worm

बच्चो की गुदा में चुरने (कृमि) पड़ना-
 about stomach worm
•    माता के दूषित  दूध पीने से या अजीर्ण में दूध पीने या भोजन करने से तथा प्रतिदिन खट्टा-मीठा भोजन what is stomach wormकरने से अथवा कड़ी, रायता आदि पतले पदार्थों के अधिक और निरंतर खाने से तथा मैदा गुड़ आदि मिले द्रव्यों के खाने से, कब्ज रहने से विरुद्ध भोजन दूध-दही, दूध-नमक आदि कई कारणों से पेट में आंतों में तथा मल में कीड़े (कृमि) पैदा हो जाया करते हैं। पुरीषज कृमि, कफज कृमि, रक्तज कृमि आदि कई प्रकार के होते हैं और इनकी लंबाई, चौड़ाई तथा रंग-रूप भी भिन्न-भिन्न प्रकार का होता है। अतः हम यहां उन सबका अलग-अलग खुलासा वर्णन न करके सिर्फ मलद्वार तथा मल में रहने वाले कृमि का ही वर्णन करेंगे। यह कीड़े जिन्हें हम चुरना या चिनूना भी कहते हैं। सिर्के या पानी के कीड़ों जैसे होते हैं। अक्सर यह कीड़े आंतों में होते हैं। गुदा में खुजली चलती है, कष्ट आदि चिन्ह होते हैं। यह छोटे-छोटे सूत्र जैसे की़ड़े होते हैं, जो दल बांधकर गुदा के पास में रहते हैं तथा कभी-कभी मूत्राशय की तरफ भी झपट मार देते हैं, फिर इन स्थानों में जलन होती है।
•    नाक के जड़ भाग में तथा गुदा द्वार में खुजली चलती है, सांस में बदबू आती है, शौच के समय बड़ा दर्द होता है और रात को गुदा की खुजली के मारे नींद हराम हो जाती है। कभी-कभी मल के साथ गुदा मार्ग से बाहर भी निकल जाते हैं। पेट फूलना, दर्द, दांत पीसना, सोते-सोते जग उठना, नासिकाग्र और गुह्वाद्वार में खुजली, पेट की सख्ती और गर्मी, शरीर शीर्ण, पीलापन, आंखों का फैलाव, आम मिश्रित मल, कभी-कभी बेहोशी होना, लार बहना आदि चिन्ह (उपद्रव) होते हैं। यह कीड़ा चावल की तरह सफेद तथा उतना ही बड़ा पैदा होकर बाद में बढ़ते हुए तीन चार इंज तक लंबा हो जाता है तथा फिर यह पेट में मुंह की तरफ चढ़कर केचवे का रूप धारण कर लेता है और इसकी लंबाई 4 से 12 इंच तक हो जाती है।
चुरना (कृमि) निवारण योग-
•    अनार का छिलका पानी में औटाकर थोडा़-थोड़ा गुनगुना गर्म करके प्रातः सायं पिलाने से 3 दिन में चुरने मर जाते हैं। तत्पश्चात प्रतिमास बच्चे को दो बूंद के हिसाब से शुद्ध किया हुआ अरण्डी का तेल गर्म दूध में पिला देने से पेट साफ हो जाएगा।stomach worm treatment
•    पलास पापड़ा, नीम की छाल, सहजन की जड़, नागरमोशा, देवदारू, बायबिंडग। इनके एक टंक चूर्ण का क्वाथ 7 दिन पिलाएं तो बालक के पेट की कृमि नाश होकर ज्वर भी शांत हो जाएगा। पानी के संग हींग गुदा में लगाना व पिलाना भी लाभकर है।
•    अरण्डी के तेल को गर्म पानी के साथ देना चाहिए अथवा अरण्डी का रस शहद में मिलाकर पिलाना चाहिए।
•    टेसू के फूस का चूर्ण शहद के साथ देना या दूध में घिसकर पिलाना चाहिए। बडे़ बालकों को टेसू के बीज और बायबिडंग 3-3 माशा लेकर चूर्ण बना नींबू के रस या शहद के साथ चटाना चाहिए।
•    अर्क पत्रों का चूर्ण गुड़ के साथ मिलाकर देने से बच्चों के छोटे-बड़े हर प्रकार के चुरने कृमि नष्ट हो जाते हैं।
•    खुरासानी अजवायन 6 माशे पीसकर बासी पानी से प्रातः लें तो उदर कृमि जाए अथवा बायबिडंग का चूर्ण मधु में मिलाकर खाए तो उदरकृमि नष्ट हो जाते हैं। चिड़िया की बीट का चूर्ण गुदा में लगा दें तो कृमि नष्ट हो जाते हैं।
•    एरंड के पत्रों का स्वरस अथवा धतूरे के पत्रों का स्वरस को तीन दिन तक 3-3 बार मल स्थान में लगाएं तो बच्चों का उदर कृमि (चुरना) नष्ट होकर रोग शान्त होता है।
•    खजूर के पत्तों को 2 तोला लेकर आधा सेर पानी में क्वाथ करें। आधा पाव जल शेष रह जाने पर उतारकर छानकर उसे 24 घंटे रख छोड़ें। बाद में 6 माशा मधु मिलाकर पिएं। इस प्रकार 7 दिन करने से उदर के दारुण कृमियों का भी नाश हो जाएगा।
•    पक्की खजूर एक छटांक खाकर ऊपर से दो नींबू भी चूस लें तो सब प्रकार का कृमिरोग नाश हो जाता है और यदि कोई 3 माशा कमेला को 6 तोला गुड़ में मिलाकर खाए तो उसका कृमि रोग 3 दिन में ही नष्ट हो जाता है।
•    बच्चों को जन्म घुट्टी के साथ गौमूत्र मिलाकर पिलाने से तथा बड़ों को बायबिडंग के चूर्ण को गौमूत्र के साथ देने से पेट के तथा गुदा के कृमि नष्ट हो जाते हैं।
•    रोजाना 2-3 तोला गौमूत्र पीने से ही 4-5 दिन में कृमिरोग का नाश हो जाता है।
•    अजवायन, बायबिडंग, पलाश पापड़ा तथा सुहागा। इनके चूर्ण को गुड़ मिलाकर खाने से उदर कृमि का नाश हो जाता है।
•    तारपीन का तेल 8-10 बूंद बताशे में डालकर दें।