Friday 29 November 2013

asafoetida




हींग- asafoetida
हींग कोई फल या फूल नहीं होता है। यह तो पेड़ के तने से निकली हुई गोंद होती है। इसका पेड़ लगभग 200 सेमी उंचा होता है। इसके पत्ते लम्बे होते हैं। ये हींग का उपयोग विभिन्न रोगों को दूर करने में किया जाता है। यहां पर कुछ महत्वपूर्ण उपयोगों के बारे में बताया जा रहा है-
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  • यदि दांतों में तेज दर्द हो रहा हो तो वहां पर घी में तली हुई हींग दबाएं।
  • दाद एवं खाज-खुजली हो तो हींग को पानी में रगड़ कर लेप कर सकते हैं।
  • यदि जननांगों से सम्बंधित कोई रोग हो तो 2 चुटकी हींग का चूर्ण और 2 ही चुटकी इलायची के दाने के चूर्ण एक साथ आग पर सेंक लें। सेंकने के बाद इन्हें दूध में  मिलाकर पिला दें। इससे जननांगों के रोग दूर हो जाते हैं।
  • किसी स्त्री को बार-बार गर्भपात हो जाता हो तो हींग का उपयोग कर सकते हैं। गर्भवती महिला को चक्कर आने पर या दर्द होने पर हींग को घी में सेंक कर तुरंत पानी के साथ निगलने को दें।
  • पेट में कीड़े हों या दर्द हो तो 4-5 चुटकी हींग का पाउडर पानी से खाली पेट लेना चाहिए।
  • किसी भी नशे की आदत को दूर करने के लिए 2 ग्राम हींग का चूर्ण दही या पानी में मिला कर पिला दें।
  • घाव में कीड़े उत्पन्न हो जाएं तो नीम के पत्तों के साथ हींग को पीसकर घाव में लगाएं। जब घाव के कीड़े मरेंगे तो घाव बहुत जल्दी ठीक हो जाएगा।

Thursday 28 November 2013

indian gooseberry




आंवले के प्रयोग
वमन (उल्टी) :
  •  उल्टी तथा हिचकी में आंवले का 15-20 मिलीलीटर रस, 8-10 ग्राम मिश्री मिलाकर देने से लाभ मिलता है। इसे दिन में 3-4 बार लेना चाहिए।

  • आंवले के पेड़ की छाल और पत्तों का काढ़ा को 40 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह और शाम पीने से गर्मी की दस्त और उल्टी बंद दूर जाती है।
    अांवला
    www.healthcontains.blogspot.in
    आंवला
  • आंवले के 20 मिलीलीटर रस में एक चम्मच शहद और 10 ग्राम सफेद चंदन का चूर्ण मिलाकर पिलाने से उल्टीबंद हो जाती है।
  • पिप्पली का बारीक चूर्ण और आंवले के रस में थोड़ा सा शहद मिलाकर चाटने से उल्टी आने में लाभ होता है।
  •  वात, पित्त, कफ से पैदा होने वाली उल्टी में आंवला तथा अंगूर को पीसकर 60 ग्राम खांड, 60 ग्राम शहद और 160 मिलीलीटर पानी मिलाकर कपड़े से छानकर पीएं।
  •  चंदन और आंवले का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर एक-एक चम्मच चूर्ण दिन में 3 बार चीनी और शहद के साथ चाटें। इससे गर्मी के कारण होने वाली उल्टी दूर हो जाती है।
  • आंवले के रस में शहद और 20 ग्राम सफेद चंदन का बुरादा मिलाकर चाटने से उल्टी दूर हो जाती है।
    what is indian gooseberry
    आंवला

संग्रहणी : मेथी दाना के साथ आंवलों के पत्तों का काढ़ा बना लें। इसे 15 से 20 मिलीलीटर की मात्रा में दिन में 2-3 बार पिलाएं। इससे संग्रहणी मिट जाती है।
मूत्रकृच्छ (पेशाब में कष्ट या जलन होने पर) :

  •  आंवले के 25 मिलीलीटर रस में इलायची का चूर्ण डालकर दिन में 3-4 बार पीने से मूत्रकृच्छ दूर होता है।
  • आंवले की ताजी छाल के 15-20 मिलीलीटर रस में 2 ग्राम हल्दी और 10 ग्राम शहद मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से मूत्रकृच्छ में लाभ मिलता है।

विरेचन (दस्त कराना) : आंवले के 20-40 मिलीलीटर रस में पर्याप्त मात्रा में शहद और चीनी को मिलाकर सेवन कराना चाहिए। इससे दस्त आ जाते हैं।
अर्श (बवासीर) : -

  •  सूखे आंवले को बारीक पीसकर प्रतिदिन सुबह-शाम एक चम्मच दूध या छाछ में मिलाकर पीने से खूनी बवासीर ठीक होती है।
  •  बवासीर के मस्सों से अधिक खून के बहने में 7 से 8 ग्राम आंवले के चूर्ण का सेवन दही की मलाई के साथ दिन में 2-3 बार करना चाहिए।
  •  आंवलों को अच्छी तरह से पीस लें, फिर उसे एक मिट्टी के बर्तन में लेप कर दें। फिर उस बरर्तन में छाछ भरकर उस छाछ को रोगी को पिलाएं। इससे बवासीर में लाभ मिलता है।
  •  सूखे आंवलों का चूर्ण 15-20 ग्राम लेकर 250 मिलीलीटर पानी में मिलाकर मिट्टी के बर्तन में रात भर भिगोकर रखें। दूसरे दिन सुबह उसे हाथों से मसलकर छान लें तथा छने हुए पानी में 5-6 ग्राम चिरचिटा की जड़ का चूर्ण और 50-60 ग्राम मिश्री मिलाकर पीएं। इसको पीने से कुछ दिनों में ही बवासीर ठीक हो जाती है और मस्से गिर जाते हैं।

रक्तगुल्म (खून की गांठे) : आंवले के रस में कालीमिर्च डालकर पीने से रक्तगुल्म दूर हो जाता है।
शुक्रमेह :धूप में सुखाए हुए गुठली रहित आंवले के 15 ग्राम चूर्ण में दोगुनी मात्रा में मिश्री को मिला लें। इसे 250 मिलीलीटर तक ताजे पानी के साथ 15-20 दिनों तक लगातार सेवन करें। इससे स्वप्नदोष, शुक्रमेह आदि विभिन्न रोगों में लाभ मिलता है।
पित्तदोष : गाय का घी, आंवले का रस, शहद  इन सभी को एक समान मात्रा में लेकर आपस में घोंटकर लें। इससे पित्तदोष तथा रक्तविकार के कारण आंखों के रोग दूर हो जाते हैं।
खूनी अतिसार (रक्तातिसार) : यदि दस्त के साथ खून आता हो तो आंवले के 15-20 मिलीलीटर रस में 15 ग्राम शहद और 5 ग्राम घी मिलाकर रोगी को पिलाएं और ऊपर से बकरी का दूध 100 मिलीलीटर तक दिन में 3-4 बार पिलाएं।
प्रमेह (वीर्य विकार) :

  • आंवला, दारू-हल्दी, हरड़, बहेड़ा, नागर-मोथा, देवदारू इन सबको समान मात्रा में लेकर इनका काढ़ा बना लें। इसे 15-20 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम प्रमेह के रोगी को पिलाएं।
  • नीम की छाल, गिलोय, आंवला, , परवल की पत्ती को बराबर-बराबर 50 मिलीलीटर की मात्रा में लेकर आधे लीटर पानी में रातभर भिगो दें। इसे सुबह उबालें, जब यह चौथाई मात्रा में शेष बचे तो इसमें 2-3 चम्मच शहद मिलाकर दिन में 3-4 बार सेवन करें। इससे पित्तज प्रमेह दूर हो जाती है।
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carrot

गाजर-carrot
गाजर का जूस रोज पिएं। तन की दुर्गध दूर भगाने में यह कारगर है। सर्दियों के मौसम में डाइट में बहुत बदलाव आ जाता है। इस मौसम में हमें पोषक तत्वों व विटामिन से भरपूर कई चीजें खाने को मिल जाती हैं। इनमें से गाजर एक है। इसमें विटामिन और खनिज बहुत अधिक मात्रा में पाचे जाते हैं। गाजर हमारे शरीर के लिए बहुत लाभकारी होता है। इसमें कैल्शियम, पैक्टीन, विटामिन-ए, विटामिन-बी, विटामिन-सी और फाइबर पाया जाता है। जो कॉलेस्ट्रोल के स्तर को संतुलित करने में सहायक होते हैं।
about carrot
carrot
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Carrot
हम गाजर इस तरह ले सकते हैं : नियमित रूप से गाजर का रस लेने से आपको सर्दी और जुकाम नहीं होता है। गाजर का रस शरीर की इम्यूनिटी क्षमता को बढ़ाता है। इसमें विटामिन ए और सी अधिक मात्रा में होता है। इसके अलावा इसमें अधिक मात्रा में सिलिकॉन व खनिज पाए जाते हैं, जिससे आपकी आंखों की रोशनी सही रहती है।
गाजर का जूस त्वचा को साफ-सुथरा रखता है और चेहरे पर चमक भी बढाता है। यदि कोई महिला अपने बच्चे को स्तनपान कराती है, तो उसे गाजर का रस पीना चाहिए। इससे स्तनों में दूध की वृद्धि होती है। गाजर में विभिन्न विटामिन व खनिज होते हैं।
गाजर के लाभ :
इससे इम्यूनिटी सिस्टम मजबूत होता है। यह त्वचा के लिए बहुत लाभकारी होता है। इसके प्रयोग से दिल की बीमारियां कम होती हैं। इससे ब्लडप्रेशर नॉर्मल रहता है। इसके प्रयोग से मांसपेशियां मजबूत बनती हैं और त्वचा स्वस्थ और आकर्षक होती है। इससे शरीर में खून की कमी दूर होती है, मुंहासे कम होते हैं और आंखों की बीमारियां दूर होती हैं।
इससे अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए यहां पर क्लिक करें...
 


Wednesday 27 November 2013

thumb sucking

अंगूठा चूसना(Thumb-Sucking)
    हाथ या पैरों के अंगूठों (thumb of hands and feet) को लगातार मुंह में रखकर चूसने की आदत, बच्चों में अंगूठा चूसना रोग कहलाता है। कभी-कभी शिशु या बच्चा

अपनीअंगुलियों को भी चूसता है।
what is thumb sucking
Thumb sucking

अंगूठा चूसने की आदत डेढ़ वर्ष से दो वर्ष की आयु में अधिकतम पाई जाती है। यह आदत धीरे-धीरे, आयु बढऩे के साथ-साथ कम हो जाती है। तीन वर्ष की आयु तक लगभग समाप्त हो जाती है। इस आयु के शिशु या बच्चों में अंगूठा चूसने के बाद नींद आ जाती है।
अधिक उम्र के शिशु या बच्चे में लगातार एवं आवश्यक रूप (compulsive) से अंगूठा चूसना उसकी असुरक्षा (unsecurity), अकेलापन (boredom), दासिता (dependence) को प्रदर्शित करता है।
कारण-अंगूठा चूसने के अनेकों कारण हैं-
about thumb sucking
Thumb sucking
  • बच्चों को अधिक समय तक भूखा व अकेला रखना।
  •  मां शिशु या बच्चे के बीच भावनात्मक संबंधों का अभाव।
  • प्रसव कालीन (during labour) शिशु की मस्तिष्कीय चोटें (trauma)
  •  दांतों के निकलते समय (teething) मसूढ़ों (gums) में तीव्र सुरसुराहट (irritation)
  •  प्राकृतिक रूप से बच्चे को भूख लगने पर वह अपने हाथ-पैरों को मुंह की ओर लाता है जो स्थाई हो जाती है।
  • शीशी या बोतल आदि से दूध या पोषण (milk/nutrition) लेना या देना।
लक्षण या निदान-
  • अंगूठा चूसने का इतिहास शिशु या बच्चे के माता-पिता या अभिभावक से प्राप्त होता है।
  • शिशु या बच्चा आपने सामने खेल रहा है या उपस्थित है तो अंगूठा चूसने की स्थिति में हो सकता है।
  • अंगूठे या अंगुलियों पर घाव (soreness) या कैलस (callus) पाये जाते हैं।
  •  बच्चे का जबड़ा ठीक से बंद नहीं हो पाता है। ऊपर व नीचे के दांत आपस में नहीं मिल पाते (malocclusion)। यह स्थिति उन बच्चों में पायी जाती है, जिनमें अंगूठा चूसने की आदत 5 वर्ष का आयु के बाद भी बनी रहती है।
चिकित्सा-
thumb sucking deffition
Thumb sucking
  •   शिशु या बच्चे को पूर्ण आहार दें।
  •   शिशु या बच्चे जिस अंगुली या अंगूठे को चूसे, उस पर कड़वे पदार्थ का लेप न करें या बलपूर्वक बार-बार उसके अंगूठे को मुंह से न निकालें। ऐसा करने से शिशु या बच्चे के मानसिक विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
  •  सोते समय अंगूठा या अंगुली चूसने वाले शिशुओं या बच्चों को किसी उपचार की आवश्यकता नहीं है।
  •  अंगूठा चूसने की आदत अधिक होने पर जब बच्चा दिन में व रात में अंगूठा चूसता है, उसकी उम्र दो वर्ष से अधिक हो गयी हो, तब इसके कारणों को समझकरउपचार करना चाहिए।
  •  बच्चे को भावनात्मक सहारा (emotional assistsnce) दें, उसके कार्यों की सराहना करें, कभी बच्चे को अधिक न डाटें ताकि उसके मन में असुरक्षा का भाव पैदा न हों।
  •   बच्चे को कार्य में व्यस्त (indulge) रखें, जैसे- पैंसिल, रबड़, रंग, पेपर आदि देकर उनसे संरचनाएं, डिजायन आदि बनवाएं।
 

Tuesday 26 November 2013

Bhujiya




भुजिया
सामग्री : 
 सिंघाड़ा आटा        - 250 ग्रामabout bhujiya what is bhujiya

साबूदाना गला हुआ   - 1 कप
नमक              - स्वादानुसार
काली मिर्च पाउडर   - स्वादानुसार
पिसा जीरा          - स्वादानुसार
 तेल या घी         - तलने के लिए।

विधि :
सबसे पहले आटे को छानकर रख लें। इसके बाद तेल-घी को छोड़कर इसमें सभी सामग्रियों को मिला दें और आटे के समान गूँथ लें। इसमें आवश्यकतानुसार पानी डालें। सेव के सांचे को चिकना करें व थोड़ा आटा डालें। तेल गर्म करें व सेंव बनाकर तल लें। मोतिया भुजिया तैयार है। यह सेव काफी दिनों तक खराब नहीं होती है।
 

Monday 25 November 2013

red chily chat


red
RED CHILLY
मिर्ची की चाट बनाना
सामग्री:
आलू                     - 150 ग्राम
अदरक                   - 10 ग्राम
हरी मिर्च (बड़ी)         - 4
गरम मसाला           - एक चम्मच
धनिया पत्ती            - 50 ग्राम
बेसन                  - 750 ग्राम
नमक                    - स्वादानुसार
सौंफ                    - 5 ग्राम
अमचूर पाउडर         - आधा चम्मच
लालमिर्च               - चुटकी भर
मेथी दाना              - आधा चम्मच ।
विधि: सबसे पहले आलू को उबालें और उन्हें हाथों से अच्छी तरह मसल लें। हरी-मिर्च तथा अदरक को पीसकर उसका पेस्ट तैयार कर लें। फिर लाल-मिर्च का पाउडर, नमक, गरम मसाला और धनिया की हरी पत्ती को उसमें मिला दें। सभी मसालें तथा सौंफ को मसलें गए में मिलाकर रख दें। बेसन में पिसी हुई लालमिर्च और स्वाद के अनुसार नमक डालकर पानी मिला दें। मिर्च को बीचोबीच में से चीरें और उसमें आलू वाले मसाले को भर दें। इसके बाद बेसन में मिर्च को डुबो दें और गर्म तेल में सुनहरा भूरा होने तक तलते रहें। फिर निकाल लें और हरी-चटनी तथा टमाटर के सॉस के साथ परोसें।

Ingredients for Besan Gatte Pickle



बेसन के गट्टे का अचार-    Besan ke Gatte ka Pickle
बेसन के गट्टे का पुलाव और सब्जी तो सभी लोगों ने बनाई होगी। परंतु क्या बेसन के गट्टे का अचार किसी ने बनाया है? आओ आज बबेसन के गट्टे का अचार बनाना सीखते हैं।
उपयोगी में लायी जाने वाली सामग्री - 
    बेसन          - 100 ग्राम
    कच्चे आम     -  200 ग्राम ( 2 आम)
    सरसों का तेल  -  150 ग्राम (एक कप)
    हींग          -  मटर के दाने के बराबर)
    हल्दी पाउडर   -  आधा चम्मच
    मैथी दाना     -  आधा चम्मच
    अजवायन     -  आधा चम्मच
    सोंफ         -  एक चम्मच
    नमक        -  एक चम्मच
    लाल मिर्च      - आधी चम्मच
तरीका-
सबसे पहले कच्चे आमों को धोकर सुखा लें और छील करके कद्दू कस करके रख लें। इसके बाद बेसन को छानकर उसमें कसा हुआ आम इतनी मात्रा में मिलाएं कि बेसन के गट्टे बन जाएं। इस मिश्रण में स्वाद के अनुसार नमक और लालमिर्च डालें और अच्छी तरह मिला लें। इसके बाद इस मिश्रण को गट्टे का आकार दे दें। गट्टे बनाकर प्लेट में रख लें।
इसके बाद आधा लीटर तेल कढाई में डालें और इन गट्टों को सुनहरे होने तक तल कर निकाल लें। इसी प्रकार सभी गट्टे सुनहरे तल कर तैयार कर लें। जब गट्टे ठंडे हो जाते हैं तो अचार तैयार करते हैं। 
कढ़ाई में बचे हुए तेल में सारा तेल मिला लें, गर्म होने पर आग बन्द कर दें, तेल के थोड़ा ठंडा होने पर पहले अजवायन, सोंफ, हींग, हल्दी पाउडर, नमक और लाल मिर्च सभी मसाले क्रमश: डालते जाइये और बचे हुये आम कद्दूकस और गट्टे इस मसाले में मिला दें।
अब आपके गट्टे और आम का अचार बनकर तैयार हो चुका है। अचार के पूरी तरह ठंडा होने के बाद किसी साफ सूखे प्लास्टिक या कांच के बर्तन में भर करके रख दें।  2-3 दिनों में ही अधिक स्वादिष्ट बेसन के गट्टे का अचार (Besan ke Gatte Pickle) बन जाता है। इसके बाद जब भी आपका मन करे, साफ और सूखे चम्चे की सहायता से अचार को निकालें और खाएं। इस अचार को एक साल तक खाने के लिए रखना चाहते हैं तो अचार को तेल में डुबोकर रखें।

Children disease




बच्चों के रोगों की चिकित्सा-
·   नागरमोथा, काकड़ासिंगी, समुद्र फेन, बायबिंडग, अतीस, अरण्ड की छाल, बहेड़े की छाल, आंवला, सोंठ, मिर्च, पीपल, अजवायन, इलायची के दाने 3-3 माशा, चौकिया सुहागा, वंशलोचन, रूमी मस्तकी, यह तीनों 6-6 माशा। इन सब दवाओं को कूटकर कपड़छान चूर्ण बना लें। फिर 3 माशा शुद्ध गंधक और 3 माशा पारद को खरल में डालकर कज्जली बना लें और उपरोक्त चूर्ण मिलाकर तुलसी के पत्तों का स्वरस डालकर घुटाई करें। तैयार होने पर आधी रत्ती के बराबर गोलियां बना लें और छाया में सुखाकर रख लें। इनमें से 1-1 गोली दिन में 3 बार माता के दूध अथवा पानी से देने से बच्चों के ज्वर, कास, अतिसार, प्रतिश्याय (जुकाम) आदि रोग दूर हो जाते हैं। यह सुखा रोग से पीड़ित बालकों के लिए भी अत्यंत हितकारी है। इसके सेवन से शरीर में सप्त धातु की पुष्टि होकर बालक में स्फूर्ति बढ़ती है।
·    भुने हुए चने, तुलसी के पत्ते, भांग, माजूफल तथा अनार का छिलका। सबको समान भाग लेकर महीन चूर्ण बना लें। इसमें से जरा से चूर्ण को अंगुली अंगूठे पर लगाकर, जिस बालक की घंडी का गला नीचे को लटक आई हो, उसको ऊपर की तरफ दबा देने से घंडी ठीक हो जाती है और श्वास कास छर्दि में आराम हो जाता है।
·   वंशलोचन, बिलगिरी, अतीस, काकड़ासिंगी, नागरमोथा, छोटी पीपल, बच सफेद, काला नमक, सेंधा नमक प्रत्येक दो-दो तोला और धनिया, सुगंध बाला, जावित्री, कालीमिर्च, रूमी मस्तकी, मुलहठी, इंद जौ, सुहागे की खील, सूखा पोदीना, गुलाब के फूल, भुनी हुई हींग, कुलीञ्जन तथा जहरमोहरा खताई। यह प्रत्येक 6-6 माशा, जायफल बढिया दो नग, अनार की कली (मुंहबंद फूल) नग 5 तथा छोटी इलायची के बीज, कपूर तथा केशर। प्रत्येक 3-3 माशा और एक माशा अफीम लें। इन सब दवाओं को कूट-छान, महीन बनाकर अर्क गुलाब में घोटकर चने के बराबर गोली बना लें। माता के दूध अथवा पानी के साथ सुबह-शाम इन गोलियों को सेवन करा देने से, बालकों के ज्वर, कास, छर्दि, अतिसार, शोथ, दौर्बल्य, उदर शूल, बिवंध और अजीर्ण आदि को दूर कर देता है।
child disease treatment
Children disease
·    अपामार्ग (ओंगा) पत्र दो तोला, तुलसी पत्र 1 तोला, वंशलोचन, अतीस, लौंग प्रत्येक 3-3 माशा, छोटी इलायची 6 माशा। प्रत्येक को कूट-पीसकर कपड़छान चूर्ण बना जल के साथ घोटकर चने के बराबर गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें। इनमें से 1-1 गोली प्रात और सांयकाल माता के दूध या गर्म पानी के साथ बच्चों को देने से बच्चों के हरे पीले दस्त, आंव के दस्त, दूध न पचना व उल्टी, छर्दि होना, खांसी आना आदि रोगों में अत्यंत गुणकारी है।
·    जायफल 1 तोला, कुटकी दो तोला, शुद्ध सोना गेरू 1 तोला। सबको एक साथ कुट पीसकर घृत कुमारी (ग्वारपाठा) के रस में घोटकर मूंग के बराबर गोलियां बना लें। आवश्यकता होने पर 1 से दो गोली तक माता के दूध या गर्म पानी में घिसकर दें। इससे बच्चों की कब्ज, मलावरोध, कफ बोलना, अफारा, पसली (डब्बा) आदि रोग दूर होते हैं।
·   अतीस, नागरमोथा, भाडंगी, पीपल छोटी, काकड़ासिंगी, बहेड़ा, इंद्र जौ, मुनक्का प्रत्येक 3-3 माशे लेकर महीन चूर्ण बनाकर रख लें। बच्चों को आयु व बलाबल के अनुसार मधु के साथ सुबह-शाम चटाने से, ज्वर, अतिसार, खांसी, श्वास डब्बा, दूध फैंकना, बालशोथ आदि समस्त रोग दूर होकर शरीर पुष्ट और बलवान हो जाता है।
·    एलवा 6 माशा, गोरोचन 3 माशा, जवाखार, कटेरी के फूल के पीले चावल, केशर, जायफल, उसारे रेवंद, (रेवंद चीनी का सत) प्रत्येक 1-1 तोला लें। सबको कूट-छान, महीन चूर्ण बनाकर अदरक के रस में घोटकर मूंग के बराबर गोलियां बना लें। एक गोली मातृ दुग्ध या मधु से दें। इससे निमोनिया, डब्बा, पसली चलना, मूत्रावरोध, अफारा, कास आदि रोग नष्ट होते हैं।
·    सौंफ 5 तोला को आधा सेर पानी में डालकर खूब औटाएं। जब आधा पानी जल जाए तो कपड़ें से छानकर उस पानी में देसी खांड डेढ़ पाव डालकर चाशनी बनाएं और इसमें भुना हुआ सुहागा दो माशा, इलायची छोटे के दाने का कपड़छान चूर्ण 1 माशा मिलाकर गाढ़ा शर्बत तैयार कर लें। इसमें से 1 माशा से 3 माशा तक चटाने से बच्चे की कब्ज का ह्वास और जीवनीशक्ति का विकास हो जाता है। अगर इस शर्बत में ही मिकदार 3 माशा में 3 माशा चूने का पानी मिलाकर पिलाया जाए तो छर्दि, उल्टी व सूखा रोग का नाश हो जाता है।
·     शुद्ध टंकण भस्म (फूला सुहागा) दो भाग, उसारे रेवंद 1 भाग, आमाहल्दी 3 भाग, अजवायन 4 भाग। इन सबको मिलाकर महीन चूर्ण बना लें। इसमें से 2 रत्ती से 4 माशे तक चूर्ण को जरा से जल में गर्म करके पिलाने से दस्त होकर बच्चे के पेट का अफारा उतर जाता है तथा डब्बा, पसली, न्यूमोनिया (बाख उठना) में तुरंत ही फायजा करता है। छाती में रुका हुआ कफ दस्त से निकल जाता है।
·    गोदंती हड़ताल भस्म 5 तोला दूध से शुद्ध की हुई आंवलासार गंधक 1 तोला, दोनों को खरल में डालकर बारीक पीसकर शीशी में रख लें। मात्रा 1 से 3 रत्ती तक अनुपान- मधु, शर्करा, पानी, किंवा दूध के साथ दिन में 2 से 4 बार तक दें। इससे ज्वर, अतिसार, मन्दाग्नि, अरुचि, उल्टी, रक्तदोष, वायु, कृशता आदि सर्व रोग दूर होते हैं।
·    खर्पर शुद्ध, प्रवाल भस्म, श्रृंग भस्म, शुद्ध शिंगरफ, फुलाया सुहागा, कालीमिर्च, कपूर, केशर, स्वर्ण भस्म। इनमें से और सब चीजें बराबर लें, श्रृंग भस्म चौथाई लें। सब चीजों को मिलाकर घीगुवार (ग्वारपाठा) के रस में घोटकर आधी-आधी रत्ती की गोलियां बना लें। अनुपात- माता के दूध या जल के साथ अवस्था तथा रोगनुसार 1 से दो गोली दें। गुण- इन गोलियों से वात, कफ, ज्वर, बालशोष, अतिसार, कृमि खांसी, ज्वर, वमन आदि सब रोग ठीक हो जाते हैं और बच्चा तंदुरुस्त हो जाता है। बिना रोग ही जाड़े में देने से पुष्ट होता है।
बच्चे व बड़ों को लू लगने पर-
       कायफल की छाल के रस के साथ शक्कर मिलाकर पिलाना चाहिए अथवा कच्चे आम (कैरी) को आग में पकाकर उसके रस में चीनी या मिश्री मिलाकर पिलाना चाहिए अथवा इमली को पानी में घोल गुड़ मिलाकर शर्बत बनाएं। थोड़ा सूखा पोदीने के चूर्ण को डालकर पिलाना चाहिए। इमली की चटनी, कच्चे आम की चटनी और पोटीने की चटनी तथा नींबू की शिंकजी व शर्बत बिजूरी खट्टी अनार आदि चीजें लाभकर होती है।
जले हुए के छाले तथा घाव का उपाय-
·   खोपरा (नारियल की सूखी गिरी) जलाकर और पीस कर मल्हम की तरह लगाते रहने से जले हुए के छाले तथा घाव जल्दी ही ठीक हो जाता है।
·   जले हुए स्थान पर आलू पीसकर लगाने से, नाक का मैल (नेटा) सफेद-सफेद जो पानी निकलता है वह अथवा पानी में नमक घोलकर लगाएं तो उपाड़ नहीं होता है।
·   जले हुए घाव पर जौ के पत्तों को पीसकर लगाया करें अथवा घाव पर तिल्ली या नारियल का तेल चुपड़ कर पलास के पत्तों की जली हुई काली राख अथवा बबूल (कीकर) के पत्तों को सुखाकर व पीसकर बनाया हुआ कपड़ छान चूर्ण बुरक दिया करें तो चाहे कैसा ही भारी और बड़ा घाव क्यों ना हो शर्तिया ठीक हो जाएगा। कभी-कभी घाव को नीम के पानी से धो दिया करें।
जले हुए पर उपाय-
·     यदि आकाश से बरसे हुए ओलों को बोतल में भरकर रख लें और जले हुए स्थान पर इन ओलों के पानी से भिगोकर फोहा रख दें तो फौरन ही जलन शांत हो जाएगी और वहां उपाड़ भी न होगा तथा छाला भी न पड़ेगा, न कोई कष्ट ही शेष रहेगा।
·     नारियल की गिरी (खोपरा) जलाकर घोटकर लगाने से जले का घाव व्रण सब ठीक हो जाते हैं। परीक्षित है।
बाल सर्व रोग हर दवाइयां-
·     काले कबूतर की बीट कपड़ छान की हुई 1 तोला, मुर्गी की विष्ठा कपड़छान की हुई 1 तोला, शुद्ध सुहागा खील 1 तोला, इन तीनों को एक साथ खरल करके शीशी में रख लें। मात्रा 1 रत्ती से 2 रत्ती तक माता के दूध से दें। यह दवा बालकों से सब प्रकार के रोगों पर दिया जाता है। इससे कफ भी पतला हो जाता है।
·    जीवंती या विजिया हरड़ की मां के दूध में घिसकर प्रात नित्य देने से कोई रोग नहीं होता है। 1 साल के ऊपर की उम्र के बच्चे को ठंडे पानी में घिसकर देना चाहिए। कोई बीमारी नहीं होगी।
·   सौंफ की जड़, बायबिडंग, सनाय, बड़ी हरड़ की छाल, जीरा सफेद, जीरा सफेद, जीरा स्याह, गुलाब के फूल, मुनक्का, सौंफ, अजवायन, अमलतास का गुदा, छोटी हरड़, मीठी बच, पलास पापड़ा, उनाब, अनारदाना, लहेसवा, मुलहठी, मकोय, काकड़ासिंगी, चित्रक, छोटी पीपल, कालीमिर्च, सोंठ तथा काला नमक। इन सबको समान भाग लेकर कूट पीसकर चूर्ण बना तुलसी के पत्तों के रस में घोटकर चने के बराबर गोलियां बना लें। यह गोली बलानुसार 1 या 2 गोली गुनगुने पानी से सुबह-शाम देने से बच्चों के हर रोग में फायदा करता है। इसको नित्य देने से बच्चा नीरोग रहता है।
·    त्रिकुटा 1 तोला, अजवायन 1 तोला, जायफल आधा तोला, केशर 3 माशा, वंशलोचन 3 माशा, घी में भुनी हुई हींग 3 माशा, सञ्जर नमक 6 माशा। सबका चूर्ण बनाकर इसमें से 1-1 रत्ती चूर्ण माता के दूध के साथ दिन में दो बार देने से बालक को सदा आरोग्य रखता है। यह रोग 6 माह के बच्चों के लिए परीक्षित है।
भूत बाधा यत्न रक्षा-
·   अक्सर छोटे तथा वयस्क बालकों तथा कभी-कभी बड़ों को भी भूत बाधा हो जाया करती है, जिससे बहुत जोर का आगंतुक ज्वर होता है, चेहरा तथा आंखें लाल रहती है, शरीर टूटता है, जम्हाई (उबासी) आती है। इसके लिए नीचे लिखे यत्न करें।
·     राख का 1 गोला बनाएं। उसमें (कीकर) की 7 सूल रोपकर रोगी के सिर पर से 7 बार वार कर चौराहे पर अर्क पत्र पर अथवा नीचे ही रख आएं, रखने वाला घूमकर पीछे न देखे, तो ठीक होता है। आटे का छना हुआ छिलका (बूर-भूसी) चोकर-चूड़ी की लाख, कालीमिर्च, सांप की केंचुली, मोर पंख का चंदवा, मनुष्य के सिर के बाल, गूगल, लोहबान, गंधक, धूप तथा मीठा तेल। इनमें से जो जो चीजें प्राप्त हो सके ले लें और तेल मिलाकर ओंधी जूती पर अग्नि रख धूनी दें तो फायदा होगा।
बदन पर होने वाले फोड़े-फुंसी घाव की दवा-
·     एक गोल बैंगन में 1 तोला गंधक दबाकर, उस बैंगन का भुर्ता बनाएं। छिलका उतारकर गूदे को नारियल तेल में पीसकर लगाएं तो बालक की खुजली मिट जाती है अथवा चोक लकड़ी दो तोला, गंधक 3 माशा, शोरा 3 माशा को तिल्ली या नारियल तेल में पीस लगाएं तो खापांमा, खुजली, खारिश दूर होती है।
·    स्याह जीरा, सफेद जीरा, आमाहल्दी, दारूहल्दी, अजवायन देशी, अजवायन खुराशानी। प्रत्येत दवा-दवा 6-6 माशा लेकर महीने चूर्ण बना लें। 6 माशा गंधक और 6 माशा कच्चा पारद लेकर खरल में डालकर घुटाई करें। जब पारा गंधक में मिलकर कजलीवत हो जाए तो उसमें नीलाथोथा 4 माशा, हड़ताल 4 माशा, मंशिल 4 माशा, सिंदूर 3 माशा मिलाकर खूब घुटाई करें और उपरोक्त दवाओं का चूर्ण डाल 12 घंटे तक घुटाई करें। एकदम स्याह रंग होने पर 101 बार के धोए हुए घृत में मिलाकर मल्हम बनाकर लगाएं अथवा घृत या तेल के संग मिलाकर मालिश करें। हर प्रकार के चर्म रोग में उपयोगी है।
·    मोर की पांख का चंदवा नग 10, देशी अजवायन 3 तोला, सुपारी गली हुई, पीली कौड़ी नग 7, कमेला 1 तोला, आमाहल्दी 1 तोला, सिंदूर 1 तोला, राल 2 तोला, नीलाथोथा 3 माशा, नीम के पत्ते 2 तोला। सब दवा कूटकर आधा पाव तेल अथवा घृत में जला लें और लोहे की कड़ाही में तांबे अथवा नीम के या लोहे के डंडे से खूब घुटाई करके महीन चिकली, काली, मलहम तैयार कर लें। यदि आग लगकर सब तेल जल गया हो तो थो़ड़ा तेल और डालकर नर्म कर लें। इस मलहम के लगाने से हर प्रकार के सड़े गले घाव में भी शीघ्र भी आराम हो जाता है।
·  सफेद कत्था 1 तोला, राल सफेद 1 तोला, सिंदूर 6 माशा, सुहागा फुलाया हुआ 3 माशा, नीलाथोथा फुलाया हुआ 2 माशा, कपूर देशी 3 माशा और जिस्त का फूल (सफेद काजल) डेढ़ तोला। सब दवा पीस छान करके 101 बार धोएं हुए घृत के साथ घुटाई करके रख लें। इससे हर प्रकार के घावों में शीघ्र आराम होता है।
·   एक छंटाक पिसी हुई सफेद राल में 3 तोला घृत मिलाकर कांसी की थाली में मर्दन करें और थोड़ा-थोड़ा पानी डालकर रगड़ते जाएं। जब फूलकर मल्हमवत हो जाए तो 1 तोला सिंदूर और 3 माशा देशी कपूर मिला लें। इसके लगाने से घाव की दाह, जलन शांत होकर घाव शीघ्र भर जाता है।
हर प्रकार के घाव पर खाने की अनुभूत गोली-
·    काले सांप की केंचुली 1 तोला लेकर और कैंची से महीन-महीन कतर करके महीन चूर्ण बना लें। तत्पश्चात इसमें 1 तोला वंशलोचन और 1 तोला शुद्ध गंधक का चूर्ण मिलाकर नीम के पत्तों के रस में 3 दिन तक खरल में खूब घुटाई करें। अब इसकी 2-2 रत्ती को गोलियां बना लें। मात्रा 1 से 2 गोली तक दिन में 2 या 3 बार ठंडे पानी के साथ निगलवा दें।
·   यह औषधि व्रण, विद्रधि, अंतर विद्रधि, कर्णपाक, कान से मवाद आना, चर्म रोग, एक्जिमा, गलित कुष्ठ, चर्म कुष्ठ, दद्र, भगंदर, नाड़ी व्रण, कैंसर, प्रमेह तथा सुजाक आदि रोगों में जिनमें पूय (मवाद) आती हो तो तत्काल लाभ करती है। जिन रोगों में डाक्टर पेनिसिलिन का उपयोग करते हैं उनमें से यह गोली, उससे भी ज्यादा प्रभावशाली सिद्ध हुई।
 

Friday 22 November 2013

SPECIES Chana (Chhole) Masala Powder


चना (छोले) मसाला - Chana (Chhole) Masala Powder
चने-मसाले का प्रयोग हम छोले बनाने के लिए अधिक करते हैं। इसके प्रयोग से छोलों का स्वाद बढ़ जाता है। बाजा़र में पैकेट बंद चना मसाला भी मिल जाता है, परंतु यदि आप चाहें तो इसे अपने घर पर खुद ही बना सकते हैं। अपने घर का बना चना मसाला बाजा़र की की तुलना में अधिक साफ और स्वादिष्ट होता है। इसको बनाना बहुत ही सरल है और बनाने में अधिक समय भी नहीं लगता है। आओ आज चना मसाला हम सब मिलकर बनाते हैं।Chana (Chhole) Masala Powder
आवश्यक सामग्री:
जीरा          - 1 चम्मच
दाल चीनी   - 4-5 टुकड़े
लौंग           - 1/2 छोटी चम्मच 
अनारदाना  - 1 चम्मच
साबुत धनिया - 3 चम्मच
बड़ी इलाइची   - 2 छोटी चम्मच
कालीमिर्च       - 2 छोटी चम्मच  
लालमिर्च पाउडर - 1 छोटी चम्मच
कालानमक         - 1 छोटी चम्मच
विधि:
सबसे पहले तवे को गर्म करें। इसके बाद उस पर धनिया, अनारदाना और जीरा डालकर हल्का भूरा होने तक भून लें और इसके बाद इन मसालों को ठंडा कर लें। फिर मिक्सी में इन ठंडा किए हुए मसालों और बाकी सभी मसालों को एक साथ डालकर बारीक पीस लें।
बस अब चना मसाला तैयार है। इसके बाद इस मसाले को किसी एअर टाइट बोतल में भरकर रख दें और जब भी चने या छोले तैयार करें तो बाजा़र के मसाले के स्थान इस मसाले का उपयोग करें। इस चने-मसाले को हम 5-7 महीनों तक उपयोग में ला सकते हैं। यदि हम 200 ग्राम चने या छोले बना रहे हैं तो उसमें 4 छोटी चम्मच चना मसाला उपयोग करें और स्वादिष्ट चने या छोले बनाएं।
लौकी दाल चीला - Lauki Daal Cheela 
लौकी दाल चीला
लौकी दाल चीला

यह बहुत ही पौष्टिक व स्वादिष्ट होता है। इससे हमें अधिक मात्रा में प्रोटीन और विटामिन प्राप्त हो जाते हैं जो हमें स्वस्थ रखते हैं। आओ हम लौकी और दाल के चीले को बनाना शुरू करें।
आवश्यक सामग्री:
       मूंग की दाल     - 100 ग्राम
       हींग                 - 1-2 चुटकी
       चने की दाल     - 100 ग्राम
       उड़द की दाल     - 50 ग्राम
       लौकी               - 300 ग्राम
       बारीक हरीमिर्च - 3-4 (काट लें)
      अदरख            - 2 इंच लंबा टुकड़ा
        लाल-मिर्च      - 1/4 (यदि आप चाहें)
        नमक            - 3/4 छोटी चम्मच
        बेकिंग-पाउडर   - 3/4 छोटी चम्मच
        जीरा               - 2 छोटी चम्मच
        तेल                – चीले को सेंकने के लिए

विधि:
इसे बनाने के लिए सबसे पहले सभी दालों को साफ करके अच्छी तरह से धो लें और फिर इन्हें 6-7 घंटों के लिए पानी में भिगोंकर रख दें। इसके बाद इन दालों को पानी से निकाल लें और मिक्सी में बारीक पीस लें और लौकी को धोकर कद्दूकस कर लें।
दाल के पेस्ट को किसी बर्तन में रखकर उसमें हरी मिर्च, कद्दूकस हुई लौकी, अदरक, नमक व लाल मिर्च मिलाकर अच्छी तरह से फेंटे और फिर बेकिंग पाउडर मिलाकर और फेंट लें।
इसके बाद एक नॉनस्टिक पैन में 1 चम्मच तेल डालकर गर्म करें और उसमें 1/4 छोटी चम्म्च जीरा डालकर भून लें। उसके बाद इसमें दाल का इतना घोल डालें कि चीला 1/2 सेमी. तक मोटा दिखाई देने लगे और फिर इस चीले को ढककर 5-6 मिनटों तक हल्की आंच पर सेंके।
फिर ढक्कन को खोलकर चीला पलटें और फिर से ढककर 3-4 मिनटों तक हल्की गैस पर सेकें। जब चीला दोनों तरफ से भूरा व कुरकुरा हो जाए तो इसे प्लेट में निकाल लें और बाकी के चीले भी इसी तरह से सेंककर प्लेट में निकालकर रख लें। अब आपका लौकी दाल चीला तैयार है।