Thursday 12 December 2013

prolapus ani



गुदाभ्रंश (कांच निकलना) रोग की चिकित्सा-
·        माजूफल को पीसकर लेप करने से कांच का निकलना बंद हो जाता है अथवा अनार के फूलों को पीसकर लेप करें तो कांच निकलना बंद हो जाता है।
·    अनार के छिल्के को उबालकर उस पानी में बच्चे को बिठाएं अथवा खट्टे अनार के छिलकों को कूटकर उसका क्वाथ करके उसमें बच्चे को बिठाएं तो कांच निकलना बंद होता है।
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·   लोहे को गर्म पानी में बुझाएं। जब जल गर्म हो जाए तो उसमें बच्चे को बिठाएं अथवा सिरके को किसी बर्तन में डालकर उसमें बच्चे को बिठाएं। इससे भी लाभ होते देखा गया है। दो माशा फिटकरी को पीसकर आधा सेर पानी में मिलाकर शौच के बाद सुबह-रात्रि गुदा प्रक्षालन करने से भी कांच निकलना बंद हो जाता है।
·      लसोड़ा (लहसवे) सूखे लेकर घृत में जलाकर घोट कर मल्हम बना लें। इसको गुदा निकलने पर रोगियों के लिए रोगन बादाम और काडलीवर आयल का प्रयोग में हितकर होता है।
·        लालड़ी गूंद (ढाक-पलास का गोंद) को पीसकर बराबर की मात्रा में शंख भस्म और शहद मिलाकर चटाने से गुद भ्रंश तथा कांच का निकलना बंद हो जाता है।
·        गाय के घृत में त्रिफला (हर्रे, बहेड़ा तथा आंवला) के चूर्ण मिलाकर चटाने से भी कुछ दिन में आराम हो जाता है अथवा रीढ़ की हड्डी पर रोजाना थोड़ी देर तक तिल का तेल मसलने से भी 15 दिन में यह रोग चला जाता है।
·        वट वृक्ष के पुराने फल (गोल) को पीसकर रोजाना शहद के साथ 3-3 माशा खाने से 10 दिन में ही कांच निकलना बंद हो जाता है अथवा गूलर के फल के चूर्ण में सौंफ का तेल या सौंफ का सत मिलाकर चटाने से कांच निकलना बंद हो जाता है।
·        नाभि के नीचे आरणा छाणे (गोइठे) की राख और गुदा के चारों तरफ भंवरा के बिल की मिट्टी का जल के साथ लेपन करना भी लाभकारी है।
·     जोवाहरड़े के चूर्ण को शहद में मिलाकर चटाने से कांच रोग में आराम हो जाया करता है। कांच पर मंडूर को पीसकर छिड़कने से अथवा लेप लगाने से भी यही लाभ होता है।
·    लसोड़ा (लहसवे) की राख, चमड़े की राख, माजूफल का चूर्ण या सफेदा लगाकर गुदा को स्वस्थान में बैठा देने से भी कांच निकलना बंद हो जाता है।
·        अकसर यह रोग बच्चों को ही होता है परंतु कभी-कभी बड़े-बड़े भी इस रोग के शिकार हो जाते हैं। इस रोग में निद्रावस्था में ही पेशाब बिस्तर पर निकल जाता है अथवा स्वप्नावस्था में ही रोगी पेशाब करके बिस्तर गीला कर देता है। बिछावन में पेशाब होने की वजह से शर्मिन्दा हो जाता है।
·        इस रोग के होने का खास कारण मसाने की कमजोरी है। ठंड के कारण जब मसाना या उसपर मढ़ा हुआ पट्ठा जब ढीला पड़ जाता है, तो पेशाब अज्ञात अवस्था में ही निकल जाता है। पेशाब में सफेदी होती है। अकसर ठंड करने वाले पदार्थों का विशेष सेवन करने से या ठंडे गीले रोगों के अंत में ही यह रोग होता है।
·        बच्चे को सोते समय पेशाब कर सुलाना चाहिए। सोते से जगाकर उसे रात में 1-2 बार पेशाब करवा दिया जाए तो बिस्तर पर पेशाब करना छूट जाएगा। निद्रा आने के लिए बच्चे को किसी व्यायाम द्वारा खूब थकान पैदा कराना तथा रात को उसे जगाए रखना भी बहुत ही गुणकारी है।

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