Monday 25 November 2013

Children disease




बच्चों के रोगों की चिकित्सा-
·   नागरमोथा, काकड़ासिंगी, समुद्र फेन, बायबिंडग, अतीस, अरण्ड की छाल, बहेड़े की छाल, आंवला, सोंठ, मिर्च, पीपल, अजवायन, इलायची के दाने 3-3 माशा, चौकिया सुहागा, वंशलोचन, रूमी मस्तकी, यह तीनों 6-6 माशा। इन सब दवाओं को कूटकर कपड़छान चूर्ण बना लें। फिर 3 माशा शुद्ध गंधक और 3 माशा पारद को खरल में डालकर कज्जली बना लें और उपरोक्त चूर्ण मिलाकर तुलसी के पत्तों का स्वरस डालकर घुटाई करें। तैयार होने पर आधी रत्ती के बराबर गोलियां बना लें और छाया में सुखाकर रख लें। इनमें से 1-1 गोली दिन में 3 बार माता के दूध अथवा पानी से देने से बच्चों के ज्वर, कास, अतिसार, प्रतिश्याय (जुकाम) आदि रोग दूर हो जाते हैं। यह सुखा रोग से पीड़ित बालकों के लिए भी अत्यंत हितकारी है। इसके सेवन से शरीर में सप्त धातु की पुष्टि होकर बालक में स्फूर्ति बढ़ती है।
·    भुने हुए चने, तुलसी के पत्ते, भांग, माजूफल तथा अनार का छिलका। सबको समान भाग लेकर महीन चूर्ण बना लें। इसमें से जरा से चूर्ण को अंगुली अंगूठे पर लगाकर, जिस बालक की घंडी का गला नीचे को लटक आई हो, उसको ऊपर की तरफ दबा देने से घंडी ठीक हो जाती है और श्वास कास छर्दि में आराम हो जाता है।
·   वंशलोचन, बिलगिरी, अतीस, काकड़ासिंगी, नागरमोथा, छोटी पीपल, बच सफेद, काला नमक, सेंधा नमक प्रत्येक दो-दो तोला और धनिया, सुगंध बाला, जावित्री, कालीमिर्च, रूमी मस्तकी, मुलहठी, इंद जौ, सुहागे की खील, सूखा पोदीना, गुलाब के फूल, भुनी हुई हींग, कुलीञ्जन तथा जहरमोहरा खताई। यह प्रत्येक 6-6 माशा, जायफल बढिया दो नग, अनार की कली (मुंहबंद फूल) नग 5 तथा छोटी इलायची के बीज, कपूर तथा केशर। प्रत्येक 3-3 माशा और एक माशा अफीम लें। इन सब दवाओं को कूट-छान, महीन बनाकर अर्क गुलाब में घोटकर चने के बराबर गोली बना लें। माता के दूध अथवा पानी के साथ सुबह-शाम इन गोलियों को सेवन करा देने से, बालकों के ज्वर, कास, छर्दि, अतिसार, शोथ, दौर्बल्य, उदर शूल, बिवंध और अजीर्ण आदि को दूर कर देता है।
child disease treatment
Children disease
·    अपामार्ग (ओंगा) पत्र दो तोला, तुलसी पत्र 1 तोला, वंशलोचन, अतीस, लौंग प्रत्येक 3-3 माशा, छोटी इलायची 6 माशा। प्रत्येक को कूट-पीसकर कपड़छान चूर्ण बना जल के साथ घोटकर चने के बराबर गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें। इनमें से 1-1 गोली प्रात और सांयकाल माता के दूध या गर्म पानी के साथ बच्चों को देने से बच्चों के हरे पीले दस्त, आंव के दस्त, दूध न पचना व उल्टी, छर्दि होना, खांसी आना आदि रोगों में अत्यंत गुणकारी है।
·    जायफल 1 तोला, कुटकी दो तोला, शुद्ध सोना गेरू 1 तोला। सबको एक साथ कुट पीसकर घृत कुमारी (ग्वारपाठा) के रस में घोटकर मूंग के बराबर गोलियां बना लें। आवश्यकता होने पर 1 से दो गोली तक माता के दूध या गर्म पानी में घिसकर दें। इससे बच्चों की कब्ज, मलावरोध, कफ बोलना, अफारा, पसली (डब्बा) आदि रोग दूर होते हैं।
·   अतीस, नागरमोथा, भाडंगी, पीपल छोटी, काकड़ासिंगी, बहेड़ा, इंद्र जौ, मुनक्का प्रत्येक 3-3 माशे लेकर महीन चूर्ण बनाकर रख लें। बच्चों को आयु व बलाबल के अनुसार मधु के साथ सुबह-शाम चटाने से, ज्वर, अतिसार, खांसी, श्वास डब्बा, दूध फैंकना, बालशोथ आदि समस्त रोग दूर होकर शरीर पुष्ट और बलवान हो जाता है।
·    एलवा 6 माशा, गोरोचन 3 माशा, जवाखार, कटेरी के फूल के पीले चावल, केशर, जायफल, उसारे रेवंद, (रेवंद चीनी का सत) प्रत्येक 1-1 तोला लें। सबको कूट-छान, महीन चूर्ण बनाकर अदरक के रस में घोटकर मूंग के बराबर गोलियां बना लें। एक गोली मातृ दुग्ध या मधु से दें। इससे निमोनिया, डब्बा, पसली चलना, मूत्रावरोध, अफारा, कास आदि रोग नष्ट होते हैं।
·    सौंफ 5 तोला को आधा सेर पानी में डालकर खूब औटाएं। जब आधा पानी जल जाए तो कपड़ें से छानकर उस पानी में देसी खांड डेढ़ पाव डालकर चाशनी बनाएं और इसमें भुना हुआ सुहागा दो माशा, इलायची छोटे के दाने का कपड़छान चूर्ण 1 माशा मिलाकर गाढ़ा शर्बत तैयार कर लें। इसमें से 1 माशा से 3 माशा तक चटाने से बच्चे की कब्ज का ह्वास और जीवनीशक्ति का विकास हो जाता है। अगर इस शर्बत में ही मिकदार 3 माशा में 3 माशा चूने का पानी मिलाकर पिलाया जाए तो छर्दि, उल्टी व सूखा रोग का नाश हो जाता है।
·     शुद्ध टंकण भस्म (फूला सुहागा) दो भाग, उसारे रेवंद 1 भाग, आमाहल्दी 3 भाग, अजवायन 4 भाग। इन सबको मिलाकर महीन चूर्ण बना लें। इसमें से 2 रत्ती से 4 माशे तक चूर्ण को जरा से जल में गर्म करके पिलाने से दस्त होकर बच्चे के पेट का अफारा उतर जाता है तथा डब्बा, पसली, न्यूमोनिया (बाख उठना) में तुरंत ही फायजा करता है। छाती में रुका हुआ कफ दस्त से निकल जाता है।
·    गोदंती हड़ताल भस्म 5 तोला दूध से शुद्ध की हुई आंवलासार गंधक 1 तोला, दोनों को खरल में डालकर बारीक पीसकर शीशी में रख लें। मात्रा 1 से 3 रत्ती तक अनुपान- मधु, शर्करा, पानी, किंवा दूध के साथ दिन में 2 से 4 बार तक दें। इससे ज्वर, अतिसार, मन्दाग्नि, अरुचि, उल्टी, रक्तदोष, वायु, कृशता आदि सर्व रोग दूर होते हैं।
·    खर्पर शुद्ध, प्रवाल भस्म, श्रृंग भस्म, शुद्ध शिंगरफ, फुलाया सुहागा, कालीमिर्च, कपूर, केशर, स्वर्ण भस्म। इनमें से और सब चीजें बराबर लें, श्रृंग भस्म चौथाई लें। सब चीजों को मिलाकर घीगुवार (ग्वारपाठा) के रस में घोटकर आधी-आधी रत्ती की गोलियां बना लें। अनुपात- माता के दूध या जल के साथ अवस्था तथा रोगनुसार 1 से दो गोली दें। गुण- इन गोलियों से वात, कफ, ज्वर, बालशोष, अतिसार, कृमि खांसी, ज्वर, वमन आदि सब रोग ठीक हो जाते हैं और बच्चा तंदुरुस्त हो जाता है। बिना रोग ही जाड़े में देने से पुष्ट होता है।
बच्चे व बड़ों को लू लगने पर-
       कायफल की छाल के रस के साथ शक्कर मिलाकर पिलाना चाहिए अथवा कच्चे आम (कैरी) को आग में पकाकर उसके रस में चीनी या मिश्री मिलाकर पिलाना चाहिए अथवा इमली को पानी में घोल गुड़ मिलाकर शर्बत बनाएं। थोड़ा सूखा पोदीने के चूर्ण को डालकर पिलाना चाहिए। इमली की चटनी, कच्चे आम की चटनी और पोटीने की चटनी तथा नींबू की शिंकजी व शर्बत बिजूरी खट्टी अनार आदि चीजें लाभकर होती है।
जले हुए के छाले तथा घाव का उपाय-
·   खोपरा (नारियल की सूखी गिरी) जलाकर और पीस कर मल्हम की तरह लगाते रहने से जले हुए के छाले तथा घाव जल्दी ही ठीक हो जाता है।
·   जले हुए स्थान पर आलू पीसकर लगाने से, नाक का मैल (नेटा) सफेद-सफेद जो पानी निकलता है वह अथवा पानी में नमक घोलकर लगाएं तो उपाड़ नहीं होता है।
·   जले हुए घाव पर जौ के पत्तों को पीसकर लगाया करें अथवा घाव पर तिल्ली या नारियल का तेल चुपड़ कर पलास के पत्तों की जली हुई काली राख अथवा बबूल (कीकर) के पत्तों को सुखाकर व पीसकर बनाया हुआ कपड़ छान चूर्ण बुरक दिया करें तो चाहे कैसा ही भारी और बड़ा घाव क्यों ना हो शर्तिया ठीक हो जाएगा। कभी-कभी घाव को नीम के पानी से धो दिया करें।
जले हुए पर उपाय-
·     यदि आकाश से बरसे हुए ओलों को बोतल में भरकर रख लें और जले हुए स्थान पर इन ओलों के पानी से भिगोकर फोहा रख दें तो फौरन ही जलन शांत हो जाएगी और वहां उपाड़ भी न होगा तथा छाला भी न पड़ेगा, न कोई कष्ट ही शेष रहेगा।
·     नारियल की गिरी (खोपरा) जलाकर घोटकर लगाने से जले का घाव व्रण सब ठीक हो जाते हैं। परीक्षित है।
बाल सर्व रोग हर दवाइयां-
·     काले कबूतर की बीट कपड़ छान की हुई 1 तोला, मुर्गी की विष्ठा कपड़छान की हुई 1 तोला, शुद्ध सुहागा खील 1 तोला, इन तीनों को एक साथ खरल करके शीशी में रख लें। मात्रा 1 रत्ती से 2 रत्ती तक माता के दूध से दें। यह दवा बालकों से सब प्रकार के रोगों पर दिया जाता है। इससे कफ भी पतला हो जाता है।
·    जीवंती या विजिया हरड़ की मां के दूध में घिसकर प्रात नित्य देने से कोई रोग नहीं होता है। 1 साल के ऊपर की उम्र के बच्चे को ठंडे पानी में घिसकर देना चाहिए। कोई बीमारी नहीं होगी।
·   सौंफ की जड़, बायबिडंग, सनाय, बड़ी हरड़ की छाल, जीरा सफेद, जीरा सफेद, जीरा स्याह, गुलाब के फूल, मुनक्का, सौंफ, अजवायन, अमलतास का गुदा, छोटी हरड़, मीठी बच, पलास पापड़ा, उनाब, अनारदाना, लहेसवा, मुलहठी, मकोय, काकड़ासिंगी, चित्रक, छोटी पीपल, कालीमिर्च, सोंठ तथा काला नमक। इन सबको समान भाग लेकर कूट पीसकर चूर्ण बना तुलसी के पत्तों के रस में घोटकर चने के बराबर गोलियां बना लें। यह गोली बलानुसार 1 या 2 गोली गुनगुने पानी से सुबह-शाम देने से बच्चों के हर रोग में फायदा करता है। इसको नित्य देने से बच्चा नीरोग रहता है।
·    त्रिकुटा 1 तोला, अजवायन 1 तोला, जायफल आधा तोला, केशर 3 माशा, वंशलोचन 3 माशा, घी में भुनी हुई हींग 3 माशा, सञ्जर नमक 6 माशा। सबका चूर्ण बनाकर इसमें से 1-1 रत्ती चूर्ण माता के दूध के साथ दिन में दो बार देने से बालक को सदा आरोग्य रखता है। यह रोग 6 माह के बच्चों के लिए परीक्षित है।
भूत बाधा यत्न रक्षा-
·   अक्सर छोटे तथा वयस्क बालकों तथा कभी-कभी बड़ों को भी भूत बाधा हो जाया करती है, जिससे बहुत जोर का आगंतुक ज्वर होता है, चेहरा तथा आंखें लाल रहती है, शरीर टूटता है, जम्हाई (उबासी) आती है। इसके लिए नीचे लिखे यत्न करें।
·     राख का 1 गोला बनाएं। उसमें (कीकर) की 7 सूल रोपकर रोगी के सिर पर से 7 बार वार कर चौराहे पर अर्क पत्र पर अथवा नीचे ही रख आएं, रखने वाला घूमकर पीछे न देखे, तो ठीक होता है। आटे का छना हुआ छिलका (बूर-भूसी) चोकर-चूड़ी की लाख, कालीमिर्च, सांप की केंचुली, मोर पंख का चंदवा, मनुष्य के सिर के बाल, गूगल, लोहबान, गंधक, धूप तथा मीठा तेल। इनमें से जो जो चीजें प्राप्त हो सके ले लें और तेल मिलाकर ओंधी जूती पर अग्नि रख धूनी दें तो फायदा होगा।
बदन पर होने वाले फोड़े-फुंसी घाव की दवा-
·     एक गोल बैंगन में 1 तोला गंधक दबाकर, उस बैंगन का भुर्ता बनाएं। छिलका उतारकर गूदे को नारियल तेल में पीसकर लगाएं तो बालक की खुजली मिट जाती है अथवा चोक लकड़ी दो तोला, गंधक 3 माशा, शोरा 3 माशा को तिल्ली या नारियल तेल में पीस लगाएं तो खापांमा, खुजली, खारिश दूर होती है।
·    स्याह जीरा, सफेद जीरा, आमाहल्दी, दारूहल्दी, अजवायन देशी, अजवायन खुराशानी। प्रत्येत दवा-दवा 6-6 माशा लेकर महीने चूर्ण बना लें। 6 माशा गंधक और 6 माशा कच्चा पारद लेकर खरल में डालकर घुटाई करें। जब पारा गंधक में मिलकर कजलीवत हो जाए तो उसमें नीलाथोथा 4 माशा, हड़ताल 4 माशा, मंशिल 4 माशा, सिंदूर 3 माशा मिलाकर खूब घुटाई करें और उपरोक्त दवाओं का चूर्ण डाल 12 घंटे तक घुटाई करें। एकदम स्याह रंग होने पर 101 बार के धोए हुए घृत में मिलाकर मल्हम बनाकर लगाएं अथवा घृत या तेल के संग मिलाकर मालिश करें। हर प्रकार के चर्म रोग में उपयोगी है।
·    मोर की पांख का चंदवा नग 10, देशी अजवायन 3 तोला, सुपारी गली हुई, पीली कौड़ी नग 7, कमेला 1 तोला, आमाहल्दी 1 तोला, सिंदूर 1 तोला, राल 2 तोला, नीलाथोथा 3 माशा, नीम के पत्ते 2 तोला। सब दवा कूटकर आधा पाव तेल अथवा घृत में जला लें और लोहे की कड़ाही में तांबे अथवा नीम के या लोहे के डंडे से खूब घुटाई करके महीन चिकली, काली, मलहम तैयार कर लें। यदि आग लगकर सब तेल जल गया हो तो थो़ड़ा तेल और डालकर नर्म कर लें। इस मलहम के लगाने से हर प्रकार के सड़े गले घाव में भी शीघ्र भी आराम हो जाता है।
·  सफेद कत्था 1 तोला, राल सफेद 1 तोला, सिंदूर 6 माशा, सुहागा फुलाया हुआ 3 माशा, नीलाथोथा फुलाया हुआ 2 माशा, कपूर देशी 3 माशा और जिस्त का फूल (सफेद काजल) डेढ़ तोला। सब दवा पीस छान करके 101 बार धोएं हुए घृत के साथ घुटाई करके रख लें। इससे हर प्रकार के घावों में शीघ्र आराम होता है।
·   एक छंटाक पिसी हुई सफेद राल में 3 तोला घृत मिलाकर कांसी की थाली में मर्दन करें और थोड़ा-थोड़ा पानी डालकर रगड़ते जाएं। जब फूलकर मल्हमवत हो जाए तो 1 तोला सिंदूर और 3 माशा देशी कपूर मिला लें। इसके लगाने से घाव की दाह, जलन शांत होकर घाव शीघ्र भर जाता है।
हर प्रकार के घाव पर खाने की अनुभूत गोली-
·    काले सांप की केंचुली 1 तोला लेकर और कैंची से महीन-महीन कतर करके महीन चूर्ण बना लें। तत्पश्चात इसमें 1 तोला वंशलोचन और 1 तोला शुद्ध गंधक का चूर्ण मिलाकर नीम के पत्तों के रस में 3 दिन तक खरल में खूब घुटाई करें। अब इसकी 2-2 रत्ती को गोलियां बना लें। मात्रा 1 से 2 गोली तक दिन में 2 या 3 बार ठंडे पानी के साथ निगलवा दें।
·   यह औषधि व्रण, विद्रधि, अंतर विद्रधि, कर्णपाक, कान से मवाद आना, चर्म रोग, एक्जिमा, गलित कुष्ठ, चर्म कुष्ठ, दद्र, भगंदर, नाड़ी व्रण, कैंसर, प्रमेह तथा सुजाक आदि रोगों में जिनमें पूय (मवाद) आती हो तो तत्काल लाभ करती है। जिन रोगों में डाक्टर पेनिसिलिन का उपयोग करते हैं उनमें से यह गोली, उससे भी ज्यादा प्रभावशाली सिद्ध हुई।
 

No comments:

Post a Comment